। ( २६ ) साथ गणपति की मूर्ति बनी हुई है। ८६२ ई० के घटियाला के स्तंभ में श्रीगणेश की चार मूर्तियाँ बनी हैं। गणेश के मुख में सूंड की कल्पना न जाने कब आविष्कृत हुई । इलोरा तथा घटि- याले की मूर्तियों में सूंड बनी हुई है। 'मालतीमाधव' में भी गणेश की सूंड का वर्णन है। गाणपत्यों की भी कई शाखाएँ हो गई। अन्य देवों की तरह आज तक गणपति की पूजा होती है । महा- राष्ट्र में गणपतिपूजा का उत्सव विशेष रूप से मनाया जाता है। स्कंद या कार्तिकेय की पूजा भी प्राचीन समय में होती थी। स्कंद, शिव का पुत्र माना जाता था। रामायण में उसे गंगा का पुत्र बताया गया है। इसके विपय में कई स्कंद-पूजा अन्य दंतकथाएँ भी प्रचलित हैं। स्कंद देव- ताओं का सेनापति माना जाता है। पतंजलि ने महाभाष्य में शिव और स्कंद की मूर्तियों का उल्लेख किया है। कनिष्क के सिकों पर स्कंद महासेन आदि कुमार के नाम मिलते हैं ४०४ ई० में ध्रुव- शर्मा ने बिलसद में स्वामी महासेन के मंदिर में प्रतोली बनवाई थी। हेमाद्रि के व्रतखंड में स्कंद की पूजा का वर्णन मिलता है। यह पूजा आज तक प्रचलित है। हमारे निर्दिष्ट समय में इन देवियों के अतिरिक्त सूर्य-पूजा भी वहुत अधिक प्रचलित थी। सूर्य ईश्वर का ही रूप माना जाता था। ऋग्वेद में सूर्य की उपासना का बहुत जगह सूर्य-पूजा उल्लेख है। ब्राह्मणों और गृह्यसूत्रों में भी इसका बहुत वर्णन है। सूर्य का देवों में विशेष स्थान घा। बहुत से संस्कारों में भी इसकी पूजा होती थी। इसकी पूजा दिन के
- सर रामकृष्ण गोपाल भांडारकर कृत वैष्णविज्म शैविज्म एंट अदर
माइनर रिलिजस सिस्टम्स; पृष्ट १४७-१५० । विही; पृष्ट १५०-५५ ।