पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/४

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, प्राकथन संयुक्त प्रांत की सरकार ने हिंदी और उर्दू भाषाओं की उन्नति के लिये 'हिंदुस्तानी एकेडेमी' की स्थापना कर प्रशंसनीय कार्य किया है। । उक्त एकेडेमी ने मुझे ६०० ई० से १२०० ई० तक अर्थात् राजपूत काल की भारतीय संस्कृति पर तीन व्याख्यान देने की आज्ञा देकर सम्मानित किया है, इसके लिये मैं समिति का अनुगृहीत हूँ। यह ६०० साल का काल भारतीय इतिहास में बहुत अधिक महत्त्व का है। इस काल की धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक अवस्था बहुत उन्नत थी। धार्मिक दृष्टि से तत्कालीन भारतवर्ष की दशा आश्चर्यकारक थी। बौद्ध, जैन और हिंदू धर्म तथा उनके अनेक धार्मिक संप्रदाय अपनी अपनी उन्नति कर रहे थे। अनेक संप्रदाय अस्त हुए और अनेकों का प्रादुर्भाव तथा विकास हुआ। इसी तरह कई दार्शनिक संप्रदायों का भी आविर्भाव और विकास हुआ। भिन्न भिन्न परस्पर-विरुद्ध मतों का विकास या ह्रास किस तरह हुआ यह ज्ञातव्य, रोचक तथा आश्चर्यकारक कथा है। इसी समय में प्रसिद्ध विद्वान् शंकराचार्य हुए, जिन्होंने दार्शनिक क्रांति कर दी। उनके अतिरिक्त रामानुज और मध्वाचार्य प्रभृति प्राचार्य भी हमारे समय में ग्रीक, क्षत्रपों तथा कुशनों के राज्य समाप्त होने के बाद गुप्त वंश भी उन्नत होकर नामशेष हो चुका था। भारतवर्ष में भिन्न भिन्न वंश अपना राज्य फैला रहे थे। दक्षिण में सोलकी राजाओं का अधिक प्रभाव था। उत्तर में बैस (हर्ष), पाल, सेन आदि वंश भी हुए।