का पार्थक्य (१२) बौद्ध धर्म और जैन धर्म में बहुत सी समानताओं को देखकर कुछ यूरोपीय विद्वानों ने संदेह किया है कि ये धर्म एक ही स्रोत से निकले हैं और बुद्ध महावीर का शिष्य था। बौद्ध और जैन धर्म पीछे से यह दो मतों में बट गया। वस्तुतः यह ठीक नहीं है। दोनों धर्म भिन्न भिन्न हैं अशोक के एक धर्म-लेख में निग्रंथों (जैनों ) और आजीवकों के लिये धर्ममहामातृकों को नियुक्त करने का उल्लेख मिलता है। स्वयं बुद्ध गृह- स्थाश्रम छोड़ने के बाद ऐसे साधुओं के साथ रहे थे, जो तपोमय जीवन व्यतीत करते थे। संभवतः ये जैन होंगे और इन्हीं के संग में रहकर बुद्ध ने इनकी बहुत सी बातों का बौद्ध धर्म में समावेश कर लिया हो । बौद्ध धर्म की तरह जैन धर्म भी दो मुख्य विभागों-दिगंबर और श्वेतांबर में विभक्त हो गया। दिगंवर साधु नग्न रहते हैं और श्वेतांबर सफेद या पीले कपड़े पहनते हैं। इन जैन धर्म के संप्रदाय दोनों शाखाओं के सिद्धांतों में विशेष मतभेद नहीं है। दिगंबर स्त्री का मोक्ष होना नहीं मानते और श्वेतांवर' मानते हैं। दिगंबर तीर्थकरों की प्रतिमा पूजते हैं, परंतु श्वेतांबरों की तरह पुष्प, धूप और वस्त्राभूषण से पूजा नहीं करते। उनका कहना है कि तीर्थकर वीत-राग थे, फिर इस प्रकार रागयुक्त द्रव्यादि से सेवा कर उनको सरागी बनाना महापाप है। यह भेद कब हुआ, इस विषय में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। यद्यपि बौद्ध मत की अपेक्षा जैन मत का प्रादुर्भाव पहले हुआ था, तथापि उसका बौद्ध धर्म के समान प्रचार नहीं हुआ। इसके कई कारण हैं। बौद्ध मत के सिद्धांत शीघ्र ही जैन धर्म का अधिक प्रचार न होने के कारण प्राकृत भाषा में लिखे गए और जैन-सिद्धांत दीर्घ काल तक ग्रंथरूप में परिणत नहीं किए गए। ऐसा माना जाता है कि ई० सन् की पाँचवीं शताब्दी ,
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