( ८ ) इसी तरह दूसरे स्थानीय ब्राह्मणों ने भी हिंदू धर्म के प्रचार में बहुत सहायता दी। जहाँ हिंदू धर्म को राजधर्म वनाने से बौद्ध धर्म की क्षति हुई वहाँ स्वयं बौद्ध धर्म में भी बहुत सी त्रुटियाँ आ गई थीं; उसके बहुत से संप्रदायों में विभक्त होने का उल्लेख पहले किया जा चुका है, छोटी छोटी बातों के कारण मत-भेद पैदा हो रहे थे। इसके अतिरिक्त बौद्ध भिक्षुओं में बाह्य आडंबर की अधिकता हो जाने के कारण भी जनता की उनपर से श्रद्धा उठती गई। अब बौद्ध भिक्षु वैसे सदाचारी और महात्मा न रहे थे। उनमें भी अधिकार-लिप्सा, धन-लिप्सा आदि दोष आ गए थे। वे मठों और विहारों में आराम से रहने लगे थे। उन्हें जनता के सुख-दुःखों का अधिक ध्यान न रहा था। इन सब बातों का बौद्धधर्म पर बहुत घातक परिणाम हुआ। बौद्ध धर्म राज्य की सहायता पाकर जिस वेग से बढ़ा था उसी वेग से, राज्य की सहा- यता न पाने तथा अन्य उपर्युक्त बातों से, उसका पतन हुआ। मौर्यवंश के अंतिम राजा बृहद्रथ के देहांत के साथ ही बौद्ध धर्म की अवनति का प्रारंभ हो चुका था। वृहद्रथ को मारकर उसका शुंगवंशी सेनापति पुष्यमित्र मौर्य-साम्राज्य का बौद्ध धर्म के पतन का स्वामी बन गया। ऐतिहासिक घटनाक्रम उसने फिर वैदिक धर्म का पक्ष ग्रहण कर दो अश्वमेध यज्ञ किए। संभ- वतः उसने बौद्धों पर अत्याचार भी किया, ऐसा बौद्ध ग्रंथों से पाया जाता है। वस्तुतः यहीं से बौद्ध धर्म की अवनति प्रारंभ होती उसी काल में राजपूताने में मध्यमिका ( नगरी) के राजा पाराशरीपुत्र सर्वतात ने भी अश्वमेध यज्ञ किया। ऐसे ही दक्षिण में आंध्र ( सातवाहन ) वंशी वैदिश्री शातकर्णी के समय में अश्वमेध, राजसूय, दशरात्र आदि यज्ञ हुए। इसी तरह गुप्तवंशी समुद्रगुप्त और वाकाटकवंशियों के समय में भी अश्वमेध आदि कई यज्ञ हुए, जैसा कि उनके समय के शिलालेखादि से पाया जाता है। इस 1""
पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/२९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।