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होते थे और संगीत-वेत्ताओं को नाउर अपने यहां कर इसका की उन्नति कराते थे। राजा कनिक दयान का प्रसिद्ध कवि अश्वघोष धुरंधर गायनाचार्य भी था। गुमशी मला सगुन प्रचाग के स्तंभ-लेख में अपने को नंगान में तुंहनगर नाक में - कर बतलाता है और उसके एक प्रकार के नियों पर काम का उसी राजा की मूर्ति बनी है विक्रम मंत्री पांत्री की में ईरान के बादशाह बहराम गार का हिंदुस्तान में का नौकरी के लिये ईरान भेजना वहाँ के इतिहास मिला है।