(१८६) .. .1809 है की जा सकती। इनका रंग भी बहुत उनम है ! जीवन चेष्टा के भाव-प्रदर्शन की दृष्टि से वे चित्र केवल अवचार विना- कर्पक संस्कृति को ही नहीं बताते, किंतु वे एक सत्य और विश्वमागे प्रभाव के दर्शक हैं। कुछ समय पूर्व सित्तन नवासन में, जो कृष्णा नदी के कि किनारे पकोटा से पश्चिमोत्तर में नी माल पर है, पहाड़ की काद- कर बनाए हुए मंदिर में भी ऐसे कुछ, चित्रों का पता लगा चित्रों को सबसे पहले टी० ए० गोपीनाय नाय ने देना त्रि पल्लव शासक महेंद्रवर्मा ( प्रथम ) के समय (मानवी हानाही प्रारंभ ) में बनाए गए हों ऐना अनुमान किया जाना है। मंदिर की भीतरी छतों, स्तंभों और उनकं निगं पर चित्र किन हैं। यहाँ का मुख्य चित्र बरामद की मात्रा मार्ग में इस चित्र में कमलों से भरा हुचा एक महान " है। पुप्पों के मध्य में मछलियां लभ.:: कमल लिए हुए तीन साधु दीग्य । उनका रंग और चेहरे की गधरना परनुतः पर नाचती हुई सियों फं चित्र सी।::: श्वर, गंधर्वो तथा अप्सरायों का भी वि . . मुकुट और कुंडल पहने हुए की गहरी सूचना प्रकट होती है ! फीका पड़ गया है, तो भी चित्रों की मन भांति मिल जाता है ! इन चित्रों में से कुछ मध्य प्रदेश की सजा रिचालत ने पश्चिम में रामगढ़ पहाड़ी पर बुबा हुई का में भी कुछ रंगीन चित्र बने हुए है. जो हमारे निक के आसपास को मान जाते हैं :
पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/२५६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।