पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/२५४

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(१८७) शरीर पर जेवर नहीं है। दरबार में सब जगह फर्ग पर पुत्र राजा के सिंहासन के आगे पीकदानी पड़ी हुई है और चौकियों पर ढक्कनवाले पानदान आदि पात्र रखे हुए हैं*." इन चित्र से अनुमान होता है कि यह ई० त०६२६ के बाद ना होगा। अजंटा के चित्र चित्रकला में प्रवीग प्राचार्यों के हाट सेनि हुए हैं। उनमें अनेक प्रकार का अंग-विन्यास, मुख-मुद्रा, भात्र-मंगो और अंग-प्रत्यंगों की सुंदरता, नाना प्रकार के केशपाय, काभर. चेहरों के रंग रूप आदि बहुत उत्तमता से बतलाए गए हैं. तरह पशु, पक्षी, पत्र पुष्प आदि के चित्र बहुत सुंदर है। चित्र ऐसे भावपूर्ण हैं कि उनमें चित्रित यो पुरुषों की मानसिकता का प्रत्यक्ष दिग्दर्शन होता है। भिन्न भिन्न प्रकार न मिश्रण में कमाल किया गया है चित्रम नामानिन. मित है कि प्रकृति और सौंदर्य को पूर्ण रूपमा नया दूसरा उन्हें अंकित नहीं कर सकता : नमः चित्रकला के आधुनिक बड़े वर विहार मी :: इनकी उत्कृष्टता की प्रशंसा करते हैं। मिटर पर पड़ी हुई एक रानी के चित्र की प्रांना पर करुण रस और अपना भाव ठीक टोक दर्जिन : के इतिहास में इससे बढ़कर कोई चित्र नहीं मिलना के चित्रकार चाहे अधिक साठा जालंबन का वाले अच्छा रंग भर सके. परंतु उनने में एक भी मा भाव प्रदर्शित नहीं कर सकता है। चित्र का भार कम भुके हुए सिर, अधखुली आन्ट और मिटित साध वह रानी मृत्यु-पाच्या पर बंटी हुई है। बाद हलके हाथ से सं सहाग दिए ए सही है. 2. दी जि साप. जंटा-मानी :::::