मानता । धारण करता है। इसी का नाम पुनर्जन्म है। विशेष साधनों अनुष्ठान इन स्कंधों का अपने मौलिक तत्त्वों में अंतर्भाव होना ही महानिर्वाण है। बौद्ध धर्म की सबसे बड़ी विशेषता 'अहिंसा परमो धर्मः' है। किसी भी प्रकार की हिंसा करना बड़ा भारी पाप है, परंतु पीछे से भारतवर्ष के बाहर के बौद्धों ने इस मुख्य सिद्धांत की ओर यथोचित ध्यान न दिया। शील, समाधि और प्रजायज्ञ ही उत्कृष्ट यज्ञ हैं। बौद्ध धर्म की दूसरी विशेषता यह है कि वह ईश्वर के विषय में उदासीन है। ईश्वरोपासना के बिना भी उसके अनु- सार मुक्ति या निर्वाण पाया जा सकता है। तीसरी विशेषता यह है कि वह हिंदू धर्म के प्रधानभूत अंग वर्णाश्रम को नहीं उसकी दृष्टि में सव-ब्राह्मण और शूद्र-समान रीति से सर्वोच्च स्थान पा सकते हैं। जन्म से नहीं किंतु कर्म से भी मनुष्य की प्रतिष्ठा की जानी चाहिए । बौद्धों के त्रिरत्न-बुद्ध, संघ और धर्म माने जाते थे। अनेक राजारों की ओर से संरक्षण पाकर यह धर्म बहुत बढ़ा। समय समय पर बौद्ध भिक्षयों में मत-भेद होते रहने से बौद्धधर्म में भिन्न भिन्न संप्रदाय उत्पन्न हुए। वौद्ध धर्म की अवनति को दूर करने के लिये बौद्ध भिक्षुओं की महा- सभाएँ भी समय समय पर होती रही, परंतु ज्यों ज्यों समय बीतता गया त्या त्यों मतभेद भी बढ़ते गए। चीनी यात्री इत्सिंग के समय में वौद्ध धर्म के १८ भेद हो चुके थे। पीछे से राज्य का सहारा टूट जाने के कारण बहुत शीघ्रता से बौद्ध धर्म की अवनति होने लगी और हिंदू धर्म वहुत तेजी से उन्नति-पथ पर अग्रसर होने क्योंकि उसे राज्य की भी पर्याप्त सहायता मिल रही थी। उन्नतिशील हिदू धर्म का प्रभाव वौद्ध धर्म पर बहुत पड़ा। बहुत से बौद्ध भिक्षुओं ने हिंदू धर्म की कई विशेषताओं को ग्रहण कर लिया। इन भेदों
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