पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/२३९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

, (१७८) चना गई है कि उनकी नकल कागज पर बनाने में कितने ही समय तथा परिश्रम से भी में सफल नहीं हो सका । हैलेविड के मंदिर के विषय में विमेंट स्मिथ ने लिखा-'यह मंदिर धैर्यशील मानव-जाति के अंग का प्रत्यंत पाश्चर्यजनक नमूना है। इसकी सुंदर कारीगरी के काम को देखते दंग्या बांग्य तृम नहीं होती।' इसी मंदिर के विषय में प्रोफेसर ए. ए. मेक्वानल का काधन है कि संसार भर में शायद दुसरा कोई ऐसा मंदिर न होगा, जिसके बाहरी भाग में ऐसा अद्भुत खुदाई का काम किया गया हो। नीचे की चौतरफ हाधियांवाली पंक्ति (गजघर) में दो हजार हाथी बनाए गए हैं, जिनमें से प्राकृति में कोई भी दो परस्पर नहीं मिलते। मथुरा के प्राचीन मंदिरों के, जो अब नष्ट हो चुके हैं, विषय में महमूद गजनवी ने गजनी के हाकिम को लिखा था कि यहाँ (मथुरा में ) असंख्य मंदिरों के अतिरिक्त १००० प्रासाद मुसलमानों के ईमान के सदृश दृढ़ हैं। उनमें से कई तो संगमरमर के बने हुए हैं, जिनके बनाने में करोड़ों दीनार खर्च हुए होंगे। एसी इमारते यदि २०० वर्ष लगें तो भी नहीं बन सकती। दिल्ली, प्रयाग,सारनाथ आदि के अशोक-स्तंभ भारतीय शिल्प के उपलब्ध स्तंभों में सबसे प्राचीन हैं। ये वृहत्काय स्तंभ एक ही पत्थर से काटे गए हैं और उन पर पालिश स्तंभ इतना सुंदर हुआ है कि वह आज तक अधिकांश में विद्यमान है और आजकल ऐसे पापाणों पर ऐसा सुंदर पालिश

  • पिक्चरस इलस्ट्रेशंस ऑफ एश्यंट पार्किटेकचर इन हिंदुस्तान ।

हिस्ट्री श्राफ फाइन शार्ट इन इंडिया; पृ० ४२ । 1 इंडियाज पास्ट, पृ० ८३ । $ निग; फिरिश्ता; जि० १, पृ० ५८-५६ ।