1 (१४५ ) पास, राजपूताने.सें झालावाड़ राज्य में, कोलवी, नार मध्य भारत में धमणार, वाघ आदि में ऐसे स्थान है। काली श्रादि कितनी एक भव्य गुफाओं की कटाई की सुंदरता देखकर दर्शक मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकते। ऐसी गुफाओं में से अधिकतर चौड़ है, और घोड़ी सी जैन या वैदिक मत से संबंध रखती हैं। इनमें से अधिकांश गुफाएँ हमारे समय से पूर्व की है, परंतु अजंटा की कुछ गुफाएँ, तथा कानबी, धमणार एवं बाघ आदि की हमारे समय के प्रान्भनाल की है. नमें से कई एक गुफाएँ भारतीय तक्षण-कला के सर्वोनम नमूने हैं और उनकी प्रशंसा अनेक विद्वानों ने मुक्तकंठ से की है। ईसवी सन् की सातवीं शताब्दी के अानपान नं बारहवीं शताब्दी तक सैकड़ों जैनों और वेदधर्मावलंबियों कान नामक मंदिर अब तक किसी न किसी दशा में विटा. मंदिर मान हैं। देश-भंद के अनुसार इन मंदिरों की शैली में भी अंतर है। कृष्णा नदी के उत्तर का मान- रीय भारत के मंदिर आर्य-शैली के है धार नदी में का द्रविड़ शैली के। जैनों और ब्राह्मणों के मंदिरों की माना कुछ साम्य है। अंतर इतना ही है कि जैन मंदिरों के भी हा आदि में बहुधा जैनों से संबंध रखनेवाली मूर्तियों नया का चुदी हुई पाई जाती हैं और ब्राह्माणों के मंदिरों में इन धर्म संबंधी : बहुधा जैनों के मुख्य मंदिर के चारों पर होटी छोटी दव-लि. काएँ बनी रहती हैं, जिनमें भिन्न भिन्न तीर्थकरां की प्रदिनार स्थापित की जाती है। ब्राह्मणों के मुख्य मंदिर के नाम शाही दही कोनों में चार और छोटे मंदिर होते हैं। एक मंदिगं को पंचा- यतन मंदिर कहते हैं। ब्राह्मणों के मंदिरों में विशेषकर गर्भाव ( निज मंदिर ) रहता है, जहाँ मूर्ति स्थापित होती है और प्राग मंडप : जैन मंदिरों में कहीं कहीं दो महपौर पर विस्तृत
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