पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/२१६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

के अधिकार में चला गया था और ग्यारहवीं शताब्दी में लाहौर तक पंजाव उनके हाथ में जा चुका था। बारहवीं सदी के अंत तक दिल्लो, अजमेर, कन्नौज आदि मुसलमानों के हाथ में चले गए और पीछे से युक्त प्रांत, बंगाल, दक्षिण आदि पर भी क्रमश: उनका अधि- कार हो गया और शनैः शनैः अधिकांश हिंदू-राज्य नष्ट हो गए । है आर्थिक स्थिति हम पहले कह चुके हैं कि भारतवर्ष न केवल आध्यात्मिक उन्नति में पराकाष्ठा तक पहुँचा हुआ था, किंतु भौतिक उन्नति में बहुत कमाल कर चुका था। अव उस समय की भारत की प्राधिक अवस्था पर कुछ विचार किया जाता भारतवर्ष का मुख्य व्यवसाय कृपि था । उस समय प्रायः सभी प्रकार के अनाज और फल यहाँ होते धं। कृपा की प्रत्यक प्रकार की सुविधा का पूरा खयाल रपया जाना कृपि और सिंचाई था। सिंचाई का बहुत अच्छा प्रबंध था। नहर्ग, का प्रबंध तालाबों और कुओं द्वारा सिंचाई की जाती यो । नहरों का प्रबंध प्रशंसनीय धा। राजतरंगिणी में 'लय' नामक इंजिनीयर का वर्णन आता है। काश्मीर में बाढ़ प्रानं पर यहाँ के राजा अवंतिवर्मन् ने सूय से इसका प्रबंध करने को कहा। वितस्ता ( झेलम ) के तट पर बहुत पानी देखकर बड़े बड़े बाँध वधवाकर उससे नहरें निकलवाई। इतना ही नहीं, उसनं प्रत्वंक ग्राम की भूमि का इस दृष्टि से वैज्ञानिक निरीक्षण किया कि उनके लिये कितने जल की आवश्यकता उसके अनुसार प्रत्यंक ग्राम को यथोचित जल देने की व्यवन्या की गई। कि सूय ने नदियों को इस तरह नचाया, जैसे संपरा नाँपों को नवाना -- है - कल्हर ने लिया है