(१५८) श्राय-व्यय . पर भी एक आध और कर लगता था। शंकर अनाज के रूप में लिए जाते थे। मंडपिका (नगी कर) भी कई पदार्थो पर लगता था। बंदरगाहों पर भी पानेवाले माल पर तथा दूसरे राज्य से अपनी सीमा में पानवाल माल पर आयात कर लगता था। शूत-भवनों पर भी बहुत कर लगता था। नमक तथा खानों पर भी कर लगाया जाता , परंतु ये कर भारी नहीं थे जैसा कि हुएन्संग का कथन है। उसनं राजकीय प्राय का चार भागों में व्यय किए जाने का वर्णन किया है। एक भाग सरकार तथा राष्ट्रीय कार्यों के लिये व्यय किया जाता था, दूसरा भाग सार्वजनिक कार्यकर्ताओं के लिये खर्च होता था, तीसरा भाग शिक्षा-विभाग के लिये और चौथा भिन्न भिन्न धार्मिक संप्रदायां को सहायता देने के लिये रहता था। खेती की उन्नति के लिये पर्याप्त प्रयन किया जाता था। सरकार की ओर से भूमि को नापा जाता था। कई शिलालेखों में मानदंड, 'निवर्तन', 'पदावर्त' आदि नापों का उल्लेख मिलता है। तरफ से लंवाई का 'मापक' निश्चित था। पारमेश्वरीय हस्त भी एक परिमाण होता था। ग्रामों की सीमाएँ निश्चित की जाती थीं। ग्राम पर कर लगता था। ग्राम के साथ गोचर-भूमि छोड़ी जाती था। जागीर या इनाम में मिले हुए गाँवों पर कोई कर नहीं लगता था। राज्य की ओर से तोल के वाटों का भी निरीक्षण किया जाता था। राज्य की
- राधाकुमुद सुखोपाध्याय; हर्प, पृ० ११२-१३ ।
+ वाटर पान युवनच्यांग्स ट्रैवल्स; जि० १, पृ० १७६-७७ । चिंतामणि बिनायक वैद्य; हिस्ट्री श्राफ मिडिएवल इंडिया; जि० १, पृ. १३३, जिल्द २, पृ० २४० ।