तृतीय व्याख्यान । शासन, शिल्प और कला प्राचीन भारत में राजनीति और शासन-पद्धति का पूर्ण विकास हो चुका था। हमारे देश में भी राजा के अधिकार किसी प्रकार नियंत्रित थे यहां भी कई प्रजातंत्र राज्य शासन-पद्धति थे, जिनको गणराज्य भी कहते थे। कई राज्यों में राजा चुना भी जाता था। राजा प्रजा पर अत्याचार नहीं कर सकता था। प्रजा की आवाज सुनी जाती थी। शासन-प्रबंध वहुत उत्तम होता था। हमारे काल में भी हम इस प्रकार का शासन देखते हैं। हर्प के राज्य-काल के ताम्रलेखां, हर्षचरित और हुएन्त्संग के वर्णन में तात्कालिक शासन-पद्धति का कुछ पता लगता है। राजा उस समय सर्वेसर्वा नहीं था। उसकी मंत्रिपरिपद् होती थी, जिसके हाथ में वस्तुत: राज्य की प्राय: सारी शक्ति रहती थी। राज्यवर्धन का प्रधान सचिव भंडि था। राज्यवर्धन के मारे जाने पर भंडि नं त्रिपरिषद् की बैठक बुलाकर देश की स्थिति समझाई और कहा कि 'राजा का भाई हर्प कर्तव्यपरायण, प्रजाप्रिय तथा दयालु है। उस पर विश्वास करेगी । मैं प्रस्ताव करता हूँ कि उसे राजा बनाया प्रत्येक मंत्री इसपर अपनी सम्मति दें। सब मंत्रियों ने --- प्रजा जाय।
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