(१४४) की वात है। इसमें पढ़े हुए विद्यार्थी बहुत प्रामाणिक विद्वान् माने जाते थे हर्प ने अपनी परिपद् के उत्सव में नालंद से १००० विद्वान बुलाए थे। गुसलमानों के समय में इस महत्त्वपूर्ण श्रीर उपयोगी विश्वविद्यालय का नाश हुआ। भारत में तक्षशिला का विश्वविद्यालय सब से प्राचीन था। पतंजलि, चाणक्य और जीवक यहीं के विद्यार्थी तथा अध्यापक थे। यह विश्वविद्यालय भी बहुत बड़ा था। इसमें तक्षशिला विश्वविद्यालय शिक्षा प्रारभ करने की आयु सोलह वर्ष की थी : प्रायः राजाओं तथा संपन्न पुरुषों के पुत्र इसमें पढ़ते थे। 'महासुतसोमजातक' में एक प्राचार्य से पढ़नेवाले १०० से अधिक राजकुमारों का उल्लेख है। गरीब विद्यार्थी दिन में काग करते और रात को पढ़ते थे कुछ विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय की ओर से भी काम दिया जाता था। कुछ विद्यार्थी पड़ने के बाद फीस चुकाने की प्रतिज्ञा करते थे। विद्यार्थियों के जीवन और प्राचार पर विशेप ध्यान दिया जाता था। भिन्न भिन्न जातकों से पता लगता है कि यहाँ अनेक विषय पढ़ाए जाते थे, जिनमें से कुछ ये हैं-वेद, अठारह विद्याएँ ( नहीं कहा जा सकता किये कौन सी थीं), व्याकरण, शिल्प, धनुर्विद्या, हस्तिविद्या, मंत्रविद्या और चिकित्साशास्त्र। चिकित्सा शास्त्र पर विशेप ध्यान दिया जाता था। यहाँ की शिक्षा समाप्त कर चुकने पर विद्यार्थी शिल्प, व्यवसाय आदि का क्रियात्मक अनुशीलन तथा देशदेशांतर के रीति रिवाजों का अध्ययन करने के लिये भ्रमण किया करते थे। इसके कई उदाहरण भी जातकों में मिलते हैं। यह विश्वविद्यालय भो मुसलमानों के समय में नष्ट हुआ । इत्सिंग ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ में प्राचीन शिक्षाक्रम का संक्षिप्त विवरण दिया है। साधारणतः उत्कृष्ट विद्वान् होने के लिये सबसे
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