(१४३ ) किया है, जिसका सारांश हम यहाँ उद्धृत करते हैं, जिससे तत्कालीन शिक्षणालयों के विपय से कुछ ज्ञान हो जाय । प्रारंभ में नालंद विश्वविद्यालय मगध के राजा शक्रादित्य ने बनाया था, उसके पीछे के राजाओं ने भी उसे बहुत सहायता दी । नालंद विश्वविद्यालय के अधिकार में २०० से अधिक गाँव थे, जो अनेक राजाओं ने दान दिए थे। इन्हीं गाँवों की आय से उसका व्यय चलता था। यहाँ १०००० विद्यार्थी और १५०. अध्यापक रहते थे। सुदूर विदेशों से भी विद्यार्थी यहाँ पढ़ने के लिये आते घे। चारों ओर ऊँचे ऊँचे विहार और मठ बने हुए थे। बीच वीच से सभागृह और विद्यालय थे। उनके चारों ओर बौद्ध- शिक्षकों और प्रचारकों के निवास के लिये चौसंजिली इसारतें घीं। रंग बिरंगे दरवाजों, कड़ियों, छतों और खंभों की सुंदरता देखकर लोग मोहित हो जाते थे। वहाँ कई बड़े बड़े पुस्तकालय और छ: बड़े बड़े विद्यालय थे। विद्यार्थियों से किसी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता था, किंतु उलटे उन्हें प्रत्येक आवश्यक वस्तु - भोजन, औषध और निवासस्थान आदि -मुफ्त दी जाती था। श्रेणी के विद्यार्थियों को एक अच्छा कमरा और छोटी श्रेणी के विद्यार्थियों को साधारण कमरा दिया जाता था। इस विश्वविद्यालय में संपूर्ण बौद्ध-साहित्य के अतिरिक्त वेद. गणित, ज्योतिष, तर्कशास्त्र ( हेतुविद्या ), व्याकरण, वैद्यक आदि अनेक विषयों की शिक्षा दी जाती थी! वहाँ ग्रह, नक्षत्र आदि देखनं का भी वड़ा भारी स्थान था। वहाँ की जलघड़ी मगधवासियों को समय का परिचय देती थी। उसमें प्रविष्ट होने के लिये एक परीक्षा भी देनी पड़ती थी। यह परीक्षा बहुत कठिन होती थी, जिसमें बहुत सं विद्यार्थी असफल होते थं, फिर भी १०००० विद्यार्थियों का होना श्राश्चर्य बील, तुद्धिार कईल गफ दी ईस्टर्न दई चिल्द २. पृ.। वक्ष उन -- .
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