पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१८१

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(१३०) अनेक कवियों के सैकड़ों नाटकों की रचना हुई । शिवजी का उद्धत नृत्य 'तांडव और पार्वती आदि का सुकुमार नृत्य 'लास्य' कहलाया । राजनीति राजनीति शास्त्र पर भी कई प्राचीन ग्रंथ मिले हैं। इसे नीति- शास्त्र या दंडनीति कहा जाता न्या। व्यर्थशास्त्र भी पहले नीति- शान के लिये प्रयुक्त होता घा। हमारे यहाँ अार्यशास्त्र का भी बहुत विकास हो चुका था। 'महाभारत' का शांतिपर्व राजनीति का एक उत्कृष्ट प्रामाणिक ग्रंथ कहा जा सकता है । इस विषय पर सबसे अधिक प्राचीन और अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रंथ, जिसे प्रकाशित हुए अभी १५ वर्ष से अधिक नहीं हुए, कौटिल्य का अर्थशास' है। इसके प्रकाशित होते ही भारतीय इतिहास में बहुत बड़ा परिवर्तन हो गया। हमारे समय से बहुत पूर्व का होने के कारण हम इस पर विचार नहीं करते। हमारे समय के आसपास कामंदक ने 'नीतिसार' नामक छंदोबद्ध ग्रंथ लिखा । कामंदक ने कौटिल्य को गुरु माना है। दसवीं सदी में सोमदेव सूरि ने 'नीतिवाक्यामृत' नामक एक अत्यंत उत्कृष्ट ग्रंथ की रचना की। हेमचंद्र ने 'लघुग्रहन नीतिशास्त्र' नाम से राज- नीति पर एक छोटा सा ग्रंथ लिखा। नीति विषयक इन ग्रंथों में राष्ट्र, राष्ट्र की उत्पत्ति के मात्स्यन्याय आदि भिन्न भिन्न सिद्धांत, राज्य के सात अंग-स्वामी, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोप, दंड और मित्र- तथा राजा के कर्तव्य और अधिकार, संधि और युद्ध आदि अनेक ज्ञातव्य एवं उपयोगी प्रश्नों पर विचार किया गया है। इन ग्रंथों के अतिरिक्त साहित्य के बहुत से ग्रंथों में राजनीति के उत्तम सिद्धांत दिए गए हैं, जिनमें से 'दशकुमार-चरित'. 'किरा- तार्जुनीय', 'मुद्राराक्षस' आदि मुख्य हैं।