(१२७ ) थे* डाक्टर सील लिखते हैं कि विद्यार्थियों को शिक्षा देने के लिये शवच्छेद होता था, तथा गर्भ-विमोचन और मूढ-गर्भ के आप- रेशन भी होते थे। श्रीयुत वेवर भारतीय शल्य-चिकित्सा की प्रशंसा करते हुए लिखते हैं-'आज भी पाश्चात्य विद्वान् भारतीय शल्य- चिकित्सा से बहुत कुछ सीख सकते हैं, जैसे कि उन्होंने कटी हुई नाक को जोड़ने की विधि भारतीयों से सीखी। , है . . कामशास्त्र भारत में जहाँ भौतिक और दार्शनिक विज्ञान इतने अधिक उन्नत थे, वहाँ कामशास्त्र का भी वैज्ञानिक दृष्टि से पर्याप्त विकास हो चुका था। चतुर्वर्ग में धर्म अर्थ काम और मोक्ष माने गए हैं। धर्म के संबंध से ऊपर कुछ लिखा जा चुका कामशास्त्र पर उपलब्ध ग्रंथों में सबसे प्राचीन वात्स्यायन-प्रणीत 'कामसूत्र' है। वात्स्यायन ने इस शास्त्र या इसके किसी अंग के अपने से पूर्व के प्रणेताओं के नाम दिए हैं, जिनमें से कुछ ये हैं-बौदालकि ( उद्दालक का पुत्र) श्वेतकेतु, बाभ्रव्य ( पांचाल ), दत्तक, सुवर्णनाभ, घोटकमुख, गोनर्दीय, कुचुमार आदि। इन सबके ग्रंथों का सार लेकर वात्स्यायन ने हमारे समय से पूर्व कामसूत्र लिखा। इसमें योग्य, अयोग्य स्त्री का निर्णय, स्त्री पुरुषों के विशेप भेद, रताव- स्थापन तथा रति को उत्पन्न करने और स्थिर रखने के उपाय बताए गए हैं। पुरुष-स्वभाव से अपरिचित कन्याओं को मनुष्य किन किन उपचारों और व्यवहारों से अपने अनुकूल वनावे इसका विशद वर्णन मिलता है। पति के प्रति स्त्री के कर्तव्यों तथा गृहस्थ के
- इंडियन गैजेटियर इंडिया; पृ० २२० ।
वेवर; इंडियन लिटरेचर, पृ० २७० ।