(१०६) में हमारे यहाँ का अंक-क्रम वर्तमान क्रम से बिलकुल ही भिन्न था। उसमें १ से तक के अंकों के नौ चिह्न, १०,२०,३०,४०,५०,६०, ७०, ८० और ६० के नौ चिह्न तथा १०० और १००० के लिये एक एक चिह्न नियत थे इन्हीं वीस चिह्नों से ६ तक की संख्या प्रदर्शित की जाती थी। उस काल में लाख करोड़ आदि के लिये क्या चिह्न थे, इसका निश्चित रूप से अब तक कोई पता नहीं लगा। इन अंकों के लिखने का क्रम १ से ६ तक तो वैसा ही था जैसा अब है। १० के लिये नवीन शैली की तरह १ के साथ ० नहीं, वरन् एक नियत चिह्न ही लिखा जाता था। ऐसे ही २०, ३०, ४०, ५०, ६०, ७०, ८०, ६०, १०० और १००० के लिये भी अपने अपने नियत चिह्न ही रहते थे ११ से १६ तक लिखने का क्रम ऐसा था कि पहले दहाई का अंक लिखकर उसके आगे इकाई का अंक लिखा जाता था, जैसा कि १५ के लिये १० का चिह्न लिखकर उसके आगे ५; और ३३ के लिये ३० और ३ इत्यादि; २०० के लिये १०० का चिह्न लिखकर उसकी दाहिनी ओर कभी ऊपर कभी मध्य और कभी नीचे की तरफ एक सीधी (तिरछी ) रेखा जोड़ी जाती थी। ३०० के चिह्न के लिये १०० के चिह्न के साथ वैसी ही दो लकीरें जोड़ी जाती थीं। ४०० से ६०० तक के लिये १०० का चिह्न लिखकर उसके साथ क्रमशः ४ से ६ तक के अंक एक छोटी सी आडी लकीर से जोड़ दिए जाते थे। १०१ से ६६ तक लिखने में सैंकड़े के अंक के आगे दहाई और इकाई के अंक लिखे जाते थे, जैसे कि १२६ के लिये १००, २० और ८ ६५५ के लिये और ५। यदि ऐसे अंकों में दहाई का अंक न हो तो सैंकड़े के वाद इकाई का अंक रखा जाता था, जैसे कि ३०१ के लिये ३०० और १ । २००० के लिये १००० के चिह्न की दाहिनी ओर ऊपर को एक छोटी सी सीधी आड़ी (या नीचे को ६००,
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