पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१३०

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रामान्य था। ( ७६ ) संस्कृत के विद्वान् कवियों ने पंक्षा नहीं की। छोटी हादी कामाची की पद्धति भारत में बहुत प्राचीन काल से चली आती नी। बाद और जैन धर्मग्रंथों के निर्माग-कान तक इस पद्धति का पूर्ण विज्ञान हो चुका था। ई० ले पूर्व बहुत ली कायार बन चुकी थी, जिनका महाभारत धोर पुराणों आदि में समावेश है। उस समय तक प्रसिद्ध पंचतंत्र मी बन चुका था। इसके बननं का निश्चिन नमत्र हम नहीं बनला सकते, हां ५७० ईन्ची में इसका पहन्नवी भाषा में अनुवाद है। यह ग्रंथ इतना प्रसिद्ध बुया कि इस मन्त्री बार नागिन भाषा में भी अनुवाद हो गए। इसके मित्रा हमारे मन्त्र के बार पूर्व गुणाहय नामक विद्वान द्वारा पंशाची में निधी न का भी विद्यमान ग्री, एमा दंडी, मुबंधु पार बाग का नियों जाता है। संगंद्र ने 'वृहत्पाथामंजरी नाग १::: अासपास इसका संस्कृत गं अनुवाद किया था। ने भी 'कथान्तरित्यागर' के नाग से इनका यार (.:- २०८१ के बीच में ) किया भा। UTST771 01 13:17 'शतकया-श्लोक-संग्रह' के नाम से प्राप्त होला। अतिरिक्त 'वैताल-पंचविंशति' और 'सिंहागन मानिमातिना'. . सप्तति' लादि कराओं कं पाई डोटे छोटे नामित समय में भी प्रसिद्ध धं पन अनुवादों में भारतीय कमान यूरोप में भी प्रदेशा हो गया और वहां भी पं पाए सनिल गई। यही कारणाशि हम बहुत नीरवी कथाकारली फपायों से काफी समानता पाती छोटी छोटी कार के इन संाही तिरिम पन्धान पावाल्याचिका भी किसी समापि नही दीन-हीन्दी प्राय: पर कानों की ही है...