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२—प्राकृत भाषा का सर्व साधारण में प्रचार था। यही बोलचाल की भाषा थी। इसका भी साहित्य बहुत उन्नत था।
३—दक्षिण भारत की तरफ यद्यपि पंडितों में संस्कृत का प्रचार था, तथापि वहाँ की बोलचाल की भाषा द्राविड़ी थी, जिसमें तामिल, तेलगू, मलयालम, कनाड़ी आदि भाषाओं का समावेश होता है। इनका साहित्य भी हमारे समय में उन्नत हुआ। अब हम क्रमशः इन तीनों भाषाओं के साहित्य पर विचार करते हैं।
ललित साहित्य
साहित्य की दृष्टि से हमारा निर्दिष्ट समय बहुत उन्नत है। हमारे समय से बहुत पूर्व संस्कृत साहित्य का विकास हो
संस्कृत साहित्य के
विकास की प्रगति चुका था पर इसकी वृद्धि हमारे समय में भी जारी रही। हम इस समय अन्य भाषाओं के विकास की तरह संस्कृत में भाषा-नियम
संबंधी या शब्दों के रूप-संबंधी परिवर्तन नहीं पाते। इसका एक कारण है। इस समय से बहुत पूर्व—६०० ई॰ पूर्व के आसपास—आचार्य पाणिनि ने अपने व्याकरण के जटिल नियमों द्वारा संस्कृत को जकड़ दिया। पाणिनि के इन नियमों को तोड़ने का साहस संस्कृत के किसी कवि ने नहीं किया, क्योंकि हमारे पूर्वज पाणिनि को एक महर्षि समझते थे और उसमें उनकी अगाध भक्ति थी। उसके नियमों को तोड़ना वे पाप समझते थे। यह प्रवृत्ति हम लोगों में बहुत प्राचीन काल से चली आती है, तभी तो महाभाष्यकार ने पाणिनि के सूत्रों में कुछ स्थलों पर त्रुटियाँ दिखाते हुए भी अपने को पाणिनि के रहस्यों को समझ सकने में असमर्थ कहकर उसका आदर किया है। इस समय संस्कृत में लालित्य लाने की बहुत कोशिश की गई। इसका शब्द-भांडार बहुत बढ़ा। संस्कृत की