. उसका की स्त्रियाँ, यदि वे वृस न हों, सती हो जाती है।" सब विधवायों के लिये सती होना आवश्यक नहीं था। जिस किसी की इच्छा होती, वही सती हुम्रा करती थी। ये प्रथाएँ होते हुए भी साधारणतः स्त्रियों की सामाजिक स्थिति बहुत उच्च थी। उनका पूर्ण आदर होता था. उनकी जो दिन- चर्या वेदव्यास रमृति में दी गई है, वह पढ़ने लायक है सारांश नीचे दिया जाता है—पत्री पति से पूर्व उठकर घर साफ करे, स्नान करे और भोजन बनाये । पति को भोजन कराकर वैश्वदेव यज्ञ करे। तदनंतर स्वयं भोजन कर शेष दिन आय व्यय की चिंता करे। सायंकाल को फिर घर में चाका देकर भोजन बनाये और पति को खिलाए। घरों में स्त्रियों का पूरा सम्मान या । मनुस्मृति में लिखा है कि जिस घर में नियों का सम्मान किया जाता है, वहीं देवता रहते हैं। उसी में लिखा है-पाचार्य चा- ध्याय से, और पिता प्राचार्य से दस गुना सम्मान्य है, परंतु मागा, पिता से हजार गुनी सम्माननीय है। उनकी फानूनी नियति भी फम नहीं थी। उनकी व्यक्तिगत संपत्ति के लिये गल-नियम पने थे । उन्हें भी जायदाद मिल सकती थी। कुछ विस्तार से प्रागे लिखा जायगा। झाड़ . हर दिपय --- मलाज इंस्यिाः जिद १.१० ११ ।
पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१२०
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