( ६२ ) दिक्पालों को प्रसन्न करने, ताबीज पहनने और गंडे बाँधने, गीदड़ों को मांसपिंड खिलाने तथा शकुन जाननेवालों का आदर करने का उल्लेख किया है। ऐसे ही गर्भ के समय उसकी भूतों से रक्षा करने के लिये पलंग के नीचे राख के मंडल बनाने, गोरोचन से भोजपत्र पर लिखे मंत्रों के यंत्र बांधने, कात्यायनी से रक्षा के लिये मोरपंखों के उरसने, सफेद सरसों के विखेरने प्रादि क्रियाओं का का भी बाण ने वर्णन किया है।। भवभूति ने 'मालतीमाधव' में इष्टसिद्धि के लिये अघोरघंट द्वारा बलिदान के लिये मालती को देवी के मंदिर में ले जाने का उल्लेख किया है। 'गोडवहो' में भी देवी की तुष्टि के लिये मनुष्यों और पशुओं की बलि का वर्णन है। इन सब बातों से पाया जाता है कि हमारे निर्दिष्ट समय में जादू टोनों की प्रथा विद्यमान थी; लोग भूत प्रेत, डाकिनी, शाकिनी आदि पर विश्वास करते थे। राजा लोग अपने शत्रु पर कृत्या ( मारण) और मंत्रों द्वारा घावों के आराम कराने का प्रयोग भी करते थे, जैसा कि सोमेश्वर कवि के सुरथोत्सव काव्य से जान पड़ता है। देवियों की तुष्टि के लिये पशुओं और मनुष्यों की बलि देने की घृणित और निर्दय प्रथा भी उस समय कुछ कुछ विद्यमान थी। इस विषय को समाप्त करने से पूर्व उस समय के लोगों के चरित्र पर भी दो चार शब्द कहना अप्रासंगिक न होगा। प्राचीन काल से ही भारतीयों का चरित्र बहुत उज्ज्वल चरित्र और प्रशंसनीय रहा है। मेगस्थनीज ने भारतीयों के विषय में लिखा है कि "वे सत्य बोलते थे, चोरी नहीं करते थे, वे अपने घरों में ताला नहीं लगाते थे। वीरता में भार- तीय एशियावासियों से बढ़े चढ़े थे। वे गंभीर और श्रमशील थे।
- कादंबरी; पृ० १२८-३०, निर्णयसागर संस्करण ।
विही; पृष्ठ १३६-३७ । ,