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मतिराम-ग्रंथावली

यह अद्भुत साम्य है। मर्मज्ञ मतिराम इन दोनो भावों का सहयोग निम्न-लिखित दोहे में कैसे अनोखे ढंग से करते हैं—

"पिय-बियोग तिय-दृग-जलधि जल-तरंग अधिकाय;
बरुनि-मूल-बेला परसि बहुरयो जाति बिलाय।"

लोक-प्रसिद्ध ज्ञान

कवि को जिस प्रकार विविध शास्त्रों में पारंगत होना चाहिए, वैसे ही उसको लोक-प्रसिद्ध ज्ञान से पूर्ण परिचय रखना चाहिए। सर्व-साधारण किन बातों को किस दृष्टि से देखते हैं, इस बात को विना समझे कवि उन लोगों के हृद्गत भावों का परिस्फुटन कदापि नहीं कर सकता। मति रामजी लोक-प्रसिद्ध ज्ञान से भी पूर्ण परिचित थे—

(१) तारों का टूटना अमांगलिक समझा जाता है। वृद्धजन अब भी तारे का टूटना देखकर 'शिव-शिव' कहने लगते हैं। उल्का-पात (तारों का टूटना) भावी उत्पात का सूचक माना गया है। नायक को नायिका की विरहावस्था जताने के अवसर पर उन्होंने अपने इस ज्ञान का अच्छा चमत्कार दिखलाया है। नायिका के नेत्रों से आँसू क्या गिर रहे हैं, मानो तारे टूट-टूटकर गिर रहे हैं, जो भावी अनिष्ट के सूचक हैं। कवि के शब्दों में—

"हौ न कहत, तुम जानिहौ लाल, बाल की बात
अँसुवा-उडु़गन परत हैं, होन चहत उत्पात।"

इस कथन का अभिप्राय यह है कि जैसे भावी अमंगल की शांति के लिये उपाय किए जाते हैं, वैसे ही नायक को 'मिलन'-उपाय द्वारा इस होनेवाले 'उत्पात' का निवारण करना चाहिए।

(२) यात्रा के समय खाली घड़ा देखना अशुभ है। उससे यात्रा के निर्विघ्न समाप्त होने में संदेह उपस्थित होता है। अशकुन में विश्वास करनेवाला यात्री मार्ग में खाली पड़े देखने पर अपनी यात्रा स्थगित कर देता है। नायिका-विशेष को अपने पति की