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समीक्षा

पुष्पदंत हू के दंत तोरयो ज्यों पुहुप-सार,
छीन लेत सार्बभौमहू के सदा मद हैं;
प्रबल प्रतीक सुप्रतीक के जितैया रैया
राव भावसिंह तेरे दान के दुरद हैं।"

कविराजा सूर्यमल्ल का 'वंश-भास्कर' नामक ग्रंथ पढ़ने से जाना जाता है कि कविवर मतिरामजी को भी राव भाऊसिंहजी ने बत्तीस हाथी दिए थे। मतिरामजी ने बूंदी-नरेश के हाथियों की जिस प्रकार प्रशंसा की है, उससे भी यह कथन सत्य जान पड़ता है।

(४) गज और ग्राह की पुराण-प्रसिद्ध घटना का वर्णन भी मार्मिक कवि मतिराम ने बड़े ही अनूठे ढंग से किया है। 'ललित-ललाम' में उनके इस संबंध के दो छंद बड़े ही मर्मस्पर्शी हैं। उनमें का एक छंद यहाँ उद्धृत किया जाता है—

"जूथ-पति पैठयो पानी, पोषत प्रबल मद
कलभ करेनुकन लीने संग सुख ते;
ग्राह गह्यो गाढ़े, बैर पाछिले के बाढ़े,
भयो बल-हीन, बिकल करन दीह दुख ते।
कहै 'मतिराम', सुमिरत हो समीप लखे,
ऐसी करतूति भई साहब-सुरुख ते;
दोऊ बातें छूटीं गजराज की बराबरि ही,
पाँव ग्राह-मुख ते पुकार निज मुख ते।"

(५) हिंदी-भाषा के कवियों में जैसा गज-वर्णन मतिरामजी ने किया है, वैसा वर्णन करने में अन्य कवि समर्थ नहीं हो सके। यदि कोई कवि ऐसे वर्णनों में इनकी समता करता है, तो वह इनके भाई कविवर भूषणजी ही हैं। लेकिन, हमारी राय में, यह उनके आगे ही रहते हैं। तुलना के लिये उभय कविवरों के कुछ छंद यहाँ उद्धत करना अनुचित न होगा।