हो सका था। भाऊसिंहजी के पूर्वज छत्रसालजी ने अपने विवाह में, जो कि उदयपुर में हुआ था, इतना दान किया था कि लोग आश्चर्यचकित रह गए थे। बूंदी के इतिहास से पता चलता है कि दान में दिए जानेवाले अकेले हाथियों की संख्या ही सात सौ थी। भाऊसिंहजी अपने पूर्वजों के ऐसे गौरव को भुलानेवाले पुरुषों में न थे। गज-दान करने में उन्होंने भी अपने हृदय को कभी कुंठित नहीं किया। ऐसे ही दानों के स्मारक-स्वरूप मतिरामजी के छंद और कतिपय छंदांश ध्यान देने योग्य हैं—
"हाथिन बिदारिबे को हाथ हैं हथ्यार तेरे,
दारिद बिदारिबे को हाथियै हथ्यार हैं।"
अर्थात् किसी दरिद्र का दारिद्रय नष्ट करने का विचार उठते ही 'गज-दानों' से छोटा दान करना आप जानते ही नहीं।
"दुज्जन के दल, कबि लोगनि के दारिदनि
नीके करि गजनि की फौजनि ते मारे हैं।"
"सत्ता को सपूत राव भावसिंह रीझि देत
छहू ऋतु छके मद-जल छलकत हैं;
मंगन की कहा है, मतंगन के माँगिबे को
मनसबदारन के मन ललकत हैं।"
ऐरावत, पुंडरीक, वामन, कुमुद, अंजन, पुष्पदंत, सार्वभौम और सुप्रतीक नाम के आठ दिग्गज प्रसिद्ध हैं। रत्नावली-अलंकार में संपुटित करके मतिरामजी ने इन दिग्गजों से भाऊसिंहजी के हाथियों की तुलना की है, और फिर यह दिखलाया है कि भाऊसिंहजी ऐसे ही हाथियों के दान किया करते थे—
"जीतयॅं जे रावत ऐरावत सों जंग, अंग
पुंडरीक के गनत पुंडरीक-छद हैं;
बामन बामन, मृदु कुमुद कुमुद गनैं,
अंजन के जैतवार अंजन-से कद हैं।