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समीक्षा

  इन पद्यांशों में रेखांकित शब्दों में कला का सौंदर्य लबालब भरा हुआ है। मतिरामजी के भाषा-सौंदर्य का केवल एक उदाहरण और दिया जाता है—

(१५) "बेलिन सों लपटाय रही हैं तमालन की अवली अति कारी;
कोकिल कूक, कपोतन के कुल केलि करै अति आनंदवारी।
सोच करै जनि, होहु सुखी ‘मतिराम' प्रबीन सबै नर-नारी;
मंजुल बंजुल कुंजन के घन पुंज सखी, ससुरारि तिहारी।"

गज-वर्णन

कविवर मतिराम ने 'ललित ललाम' में बहुत-से छंद राव भाऊसिंहजी के हाथियों की प्रशंसा के भी दिए हैं। इस प्रकार के वर्णनों में भी कवि की प्रतिभा का अच्छा चमत्कार दिखलाई पड़ता है। भाषा के कवि हाथियों की प्रशंसा करते समय सँड़ की चंचलता, उनकी उँचाई और गंडस्थल में मद के छलकने आदि का वर्णन अवश्य करते हैं। ब्रिटिश-राज्य के पहले भारतीय रण-सैन्य का एक अंग हाथियों से भी सुसज्जित रहता था। इस कारण उस समय हाथियों का बड़ा महत्त्व था। अँगरेज़-सरकार ने फ़ौज से हाथियों का बहिष्कार-सा कर दिया है। इस कारण अब उनका उपयोग केवल शोभा और प्रदर्शन (नुमायश) के लिये रह गया है। सवारी और खासकर शेर के शिकार में हाथी अब भी उपयोगी हैं। संस्कृत-साहित्य में भी हाथियों के परम मनोहर वर्णन हैं। समुद्र-मंथन से जो चतुर्दश रत्न प्राप्त हुए थे, उनमें इंद्र का ऐरावत भी प्रसिद्ध है। उधर पृथ्वी का भार धारण करनेवाले आठ दिग्गजों का कथन तो कवियों ने बहुत ही अधिक किया है। धर्म- शास्त्र के अनुसार गज-दान की बड़ी महिमा है। इस प्रकार के दान से दाता को बड़ा पुण्य होता है। कवि लोग गज-दान पाना बड़े