पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/६०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५६
मतिराम–ग्रंथावली

कारों के लाने का पूर्ण प्रयत्न करते हैं, तो भी उनकी कविता में एक-आध अलंकार कठिनता से आता है। उधर उत्कृष्ट कविजन साधारण वर्णन करते चले जाते हैं, परंतु वे ऐसे शब्द और भाव लाते हैं कि उनमें आप से आप अलंकारादि-संबंधी उत्तमताएँ बहुतायत से आ जाती हैं।"

उपर्युक्त समालोचना मतिरामजी के छंदों के विषय में बहुत ठीक समझ पड़ती है। इस पुस्तक में जहाँ-तहाँ मतिरामजी की जो कविता उद्धृत है, उससे पाठकगण उपर्युक्त कथन की सत्यता का अंदाजा स्वयं कर सकते हैं।

ऊपर 'ललितललाम' के जिन उदाहरणों के अच्छे होने का उल्लेख किया गया है, उनके कुछ नमूने मनोरंजन के लिये पाठकों की भेंट किए जाते हैं।

पहले अमुख्य अलंकारों को ही लीजिए—

यथासंख्य

कहे हुए पदार्थों का उसी प्रकार फिर उसी क्रम से जब कथन किया जाता है, तो उसे यथासंख्य अलंकार कहते हैं।

मतिरामजी ने इस अलंकार के उदाहरण में अपने नायक के आतंक का वर्णन किया है। कवि की राय में भावसिंहजी के तेज-पुंज में मारुत और मार्तंड-मंडल के सभी गुण आ गए हैं । इसलिये जिस प्रकार से मारुत और मार्तड लोगों को अपने प्रभाव से नाना प्रकार के कष्ट पहुँचा सकते हैं, उसी प्रकार राव भावसिंहजी अपने शत्रुओं को भी ठीक उन्हीं कष्टों से पीड़ित कर सकते हैं। वायु जिसको चाहे, उड़ा सकती, झुका सकती, तोड़ सकती और फोड़ सकती है। उसके वे चरित्र भिन्न-भिन्न वस्तुओं के प्रति स्पष्ट देखने में आते हैं। हल्की रुई को वह कैसे मज़े में उड़ा देती है, उन्नत तृण