पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/६

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कवियों से उन्होंने कवि की तुलना करके प्रस्तुत भूमिका में तुलनात्मक आलोचना का समावेश किया है। यह तुलनात्मक आलोचना, व्याख्यात्मक आलोचना की सहायक बनकर आई है, भार बनकर नहीं। इसी प्रकार कवि की ऐतिहासिक परिस्थितियों को बतला कर, उसकी कृतियों में समय का प्रभाव बतलाकर मिश्रजी ने प्रस्तुत भूमिका में ऐतिहासिक आलोचना (Historical criticism) का भी समावेश किया है। इतना ही नहीं, स्वयं कवि की मानसिक स्थिति पर प्रकाश डालकर, उसकी कृतियों द्वारा उसकी वैयक्तिक छाप को प्रकाश में लाकर उन्होंने मनोवैज्ञानिक आलोचना (Psychological criticism) के मापदंड को भी स्पर्श किया है। यद्यपि इस भूमिका में वे प्रभावात्मक आलोचना (Impressionist criticism) से दूर रहने के ही प्रयास में रहे हैं, तो भी कहीं-कहीं कवि की प्रशंसा में वे प्रभावात्मक आलोचना भी कर बैठे हैं।

मिश्रजी की एक और प्रसिद्ध पुस्तक है 'देव और बिहारी'। इसकी रचना स्वर्गीय पद्मसिंह शर्मा के संजीवन भाष्य के उत्तर में मिश्रजी ने की थी। इन्होंने इस ग्रंथ में यद्यपि देव का पक्ष लिया है, तथापि बिहारी के महत्त्व को पूर्णतया स्वीकार कर अपनी निष्पक्षता का पूर्ण परिचय दिया है। बिहारी को उनके छोटे छंदों के कारण, जूही की कली कहा है, तो देव को कमल का फूल ठहराया है। इस पुस्तक ने अपने युग में जो साहित्यिक हलचल उत्पन्न की उसे आज भी स्मरण किया जाता है।