यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५०१
मतिराम-सतसई
आशिर्वाद और प्रार्थना
तिरछी चितवनि स्याम की, लसत राधिका ओर ।
भोगनाथ को दीजिए, यह मन सुख बरजोर ॥७०२॥
मेरी मति में राम हैं, कबि मेरे ‘मतिराम' ।
चित मेरो आराम में, चित मेरे आराम ॥७०३॥
समाप्त
छं० नं० ७०३ मेरी बुद्धि (मति) में राम का निवास है । मेरे कवि'मतिराम' हैं-अर्थात् मैं मतिराम नाम का कबि हूँ मेरा चित्त आराम में रहता है इसलिये ऐ राम मेरे चित्त में आओ (आराम) ।