RECER T 2500- मतिराम-ग्रंथावली देह दीप दीपति दिपै, बदन चंद की ज्योति । दामिनि दुति मुसिक्यानि मद्, सुख की खानि उदोति ॥४३६।।* मुकत हार हरि के हिये, मरकत मनिमय होति । पुनि पावत रुचि राधिका, मुख मुसिक्यानि उदोति ॥४३७॥ बदन चंद की चाँदनी, देह दीप को जोति । राति बितें हैं लाल वह, भौन राति-सी होति ॥४३८॥ लाल चित्र अनुराग सों, रँगति नित्त सब अंग। तऊ न छाड़त साँवरो, रूप साँवरो रंग ॥४३९॥x आई फूलनि लैन कों, चलौ बाग में लाल । मद् बोलनि सों जानिहौ, म बेलिन में बाल ॥४४०॥+ ग्वालिनि देउ बताइ हौं, मोहिं कछ तुम देहु । .. बंसीबट की छाँह में, लाल जाइ लखि लेहु ॥४४१॥ = सरद चंद की चाँदिनी, को कहिए प्रतिकुल । सरद चंद की चाँदिनी, कोकहिए प्रतिकूल ॥४४२॥ - को हरि बाहन जलधि सुत, को को ज्ञान जहाज । तहाँ चतुर उत्तर दियौ, एक बचन द्विजराज ॥४४३।। भोर भए आए भवन, स्याम-बसन जुत स्याम । हँसि अंबर केसरि रँग्यो, आगे राख्यो बाम ॥४४४॥ ansaniniloinadian छं० नं० ४४४ इस दोहे में वही भाव है जो रसराज के उत्तमा नायिका और ललितललाम के पिहित अलंकारवाले छंद में है । अलंकार और नायिका भी वही हैं । यथा-'अंबर केसरि रंग रँग्यो मुसकाय के मोहन के कर दीनो।'
- दे० ललितललाम उ० मुद्रा।
+ दे० ललितललाम उ० पूर्वरूप । दे० ललितललाम उ० पूर्वरूप । xदे० ललितललाम उ० अतद्गुन ।+दे०ललितललाम उ० विशेषक। =दे० ललितललाम गूढ़ोत्तर । - दे० ललितललाम उ० चित्र । Mischitram