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समीक्षा

 

दक्षिण नायक एक तुम मनमोहन ब्रजचंद!
फुलए ब्रज-बनितान के दृग-इंदीबर-बृंद।

धृष्ट नायक निःशंक भाव से अपनी प्रियतमा के मान की परवा न करके मनमाना अपराध किया करता है। शठ नायक भी ऐसा ही है; पर वह ऊपर से तो मीठी-मीठी बातें करता है, और अंतर में अपनी शठता से नहीं चूकता। परकीयाओं में अनुराग करनेवाले नायक को उपपति तथा वेश्यानुरक्त नायक को वैशिक कहते हैं। अनेक नायक प्रियतमा से मान भी करते हैं, वे 'मानी' कहलाते हैं। क्रिया-चतुर और वचन-चतुर नामक नायक के दो और भी भेद माने गए हैं।

यथासंभव नायक के समान गुणवाली रमणी नायिका कहलाती है। ऊपर दिए नायक के अन्य सभी गुणों में समान होते हुए भी उसमें उत्साह, दक्षता तथा तेज आदि कई गुणों के मानने में आचार्यों को झिझक है, इसी कारण से उसके लक्षण में 'यथासंभव' शब्द को स्थान मिलता है।

श्रृंगार रस नायिका नायक पर ही अवलंबित है। यही उसके आलंबन-विभाव हैं। इसी कारण से मतिराम ने रसराज में नायिका-भेद का वर्णन किया है।

रसराज में वर्णित श्रृंगार रसांतर्गत नायिका भेद का—विशेष करके स्वकीया मुग्धा*[] का—सारांश आगे लिखा जाता है। मध्या और प्रौढ़ा, स्वकीया तथा परकीया और गणिका के भी दो-एक चमत्कार-पूर्ण उदाहरण यथास्थल दे दिए गए हैं।

नायिका संज्ञा को प्राप्त कर सकनेवाली रमणी-विशेष को—

"ज्यों-ज्यों निहारिए नेरे ह्वे नैनन, त्यों-त्यों खरी निकरै-सी निकाई।"

जितना ही सन्निकट से उसकी परीक्षा की जाती है, उतनी ही उसमें अच्छी-अच्छी बातें दृष्टिगत पड़ती हैं।


  1. *स्वकीया मुग्धा के प्रेम को देवजी ने बहुत अधिक महत्त्व दिया है।