पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४५२

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casiteshyaranicheDesi ARAN । abpm AAAA ४४८ मतिराम-ग्रंथावली FRIDABHARA Permanentre A AAbsionNSTRUChor जिनमैं निस-दिन बसतु है, तुम घन सुंदर नाह। क्यों न चलै तिय दृग तितै, बहुल बाह परबाह ॥१७५॥ जलद स्याम निज नाम यह, करत कहा इत आपु। जा उर नेक बसो करो, ताही के तन तापू ॥१७६॥ दिस-दिस बिगसित मालती, निसि नियराति निहारि । ऐसे अतनु-अराम में, भ्रम-भ्रम भौंर निवारि ॥१७७॥ नारि-नैन को नीर अस, तरुनी तीर उतंग। बढ़त सरित परवार के, गिरत एक ही संग । १७८॥ बात सखिनि की सीख तें, मान न जानति ठानि । पिय बिन अगमन भौन में, बैठी भौंहनि तानि ॥१७९॥* परिकर पंकज के किये, नैननि राज बिलास । मैन मित्र, मंत्री मिरग, खंजन किए खवास ॥१८०॥ लाल जनायो मैं तुम्हें, लागन चहत कलंक । चंद-मुखी वह चंद सों, अब चितवति निरसंक ॥१८१॥ बड़ें हमारे दुग कहौ, तुम कहि सकौ सुमैं न । पिय-नैननि भीतर सदा, बसत तिहारे नैन ॥१८२॥ आभा तरिवन लाल की, परी कपोलनि आनि ।। कहा छपावति चतुर तिय, कंत दंतछद जानि ॥१८३॥ गहि कोमलता सरसता, सोनो होइ सुगंध । तबहूँ कबहूँ होइ सखि, तेरे तन को बंधु ॥१८४॥ RISH १ पिय बिन आगम, २ भौहैं, ३ प्रभा, ४ तरौना। छं० नं० १७७ अतनु-अराम=कामदेव की फुलवारो। छं० नं० १८० खवास नौकर। छं० नं० १८४ तेरे तन को बंधुतेरे शरीर की बराबरी का।

  • दे० रसराज उ० मुग्धा खंडिता ।

+दे० ललितललाम उ० भ्रांति तथा रसराज उ० परिहास ।