४४४ मतिराम-ग्रंथावली asountain Holiberanavrecinem CHANNEL लसत बूंद अँसुवानि के, बरुनिनि छोर उदार । दृग तुरंग झूलनि मनो, झलकत मुकत सुढार ॥१३४॥ मानह में बिन भूषननि, धरति अधिक छबि अंग । नैन तरंगनि ते भए, तरल तुरंग सुरंग ॥१३५।। ज्यों-ज्यों छबि अधिकाति है, नवल बाल मख इंद्र। त्यों-त्यों मरझत सौति कौ, अमल बदन अरबिंदू ॥१३६॥ अंजन जुत अँसुवानि की, धारि धसति जुग नैन । मनो डोर मखतूल के, बाँधे खंजन नैन ॥१३७॥ बिंदु लसत अँसुवानि के,लाल भए दग कोर। देखें बिन पिय चंद-मख, चिनगी चगत चकोर ॥१३८॥ सपने में लालन चलत, लखि रोई अकुलाइ। जागत ह पिय हिय लगी, हिलकी तऊ न जाइ ॥१३९॥ पिय-आगम सुनि बाल तन, बाढ़े हरख बिलास । प्रथम बँद बारिद उठे, ज्यों बसुमती सुबास ॥१४०।।* याके मन में जानियत, कोऊ लग्यौ सभाग। कहत गान बिन अरथ को. प्रगट अरथ अनुराग ॥१४१॥ छाप तरौना-नखनि की, सोवत लगी कपोल । मनो मदन की मोहनी, मँगा माल अमोल ।।१४२।। मोकों तुम क्यों कहति हौ, लै गृपाल को नाँऊ। रिस मिस नेह गुबिंद को कहति फिरै सब गाँऊ ॥१४२॥ नर-नारी सब जपत हैं, घर-घर हरि को नाँउ। मेरे मुख धोखें कढ़त, परत गाज ब्रज' गाँउ ॥१४४। Sampanemamamientorecace छं० २० १४१ कहत अनुराग=इसका विना मतलब का गाना प्रेम का अर्थ प्रकट करता है अर्थात् यह किसी पर अनुरक्त है । छं० नं. १४२ तरौना-नख=कर्णफूल के दाँत । छं० नं० १४४ गाजवज्र । दे० रसराज उ० आगतपतिका।।
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