पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४२०

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मतिराम-ग्रंथावली

४१६ मतिराम-ग्रंथावली sement malini womenmans mein न तद्गुण-लक्षण जहाँ आपनौ रंग तजि लेत और को रंग। तदगुन तहँ बन्न करत जे कबि बुद्धि उतंग ॥३३१॥ उदाहरण हीरनि मोतिन के अवतंसनि सोने के भषन की छबि छावै। हार चमेली के फूलन के तिन में रुचि चंपक की सरसावै । अंग के संग तैं केसरि रंग की अंबर सेत मैं जोति जगावै ; बाल छबीली छपायें छपै नहिं लाल कहौ अब क्यों करि आवै ।। ३३२॥ प्रथम पूर्वरूप-लक्षण जहाँ और को रंग तजि बहुरि आपनौ लेत। बरनत पूरबरूप तहँ कबि ‘मतिराम' सचेत ॥३३३ उदाहरण मुकुत-हार हरि के हिए, मरकत मनिमय होत । पुनि पावत रुचि राधिका, मुख मुसकानि उदोत ॥३३४।। द्वितीय पूर्वरूप . प्रगटित पूरब दसहि को जहँ अनुबर्तन होत। दूजो पूरब रूप तहँ बरनत पंडित गोत ॥३३५।। उदाहरण बदन चंद की चांदनी, देह दीप की जोति । राति बिते हू लाल, वहि भौन राति-सी होति ॥३३६।। अतद्गुण-लक्षण जहाँ संग मैं और को रंग कछ नहिं लेत। तहाँ अतदगुन कहत हैं कबिजन बुद्धिनिकेत ॥३३७॥ छं० नं० ३३२ अवतंस-कर्णफूल । Availanca