दोष से दोष - उदाहरण
मंत्रिन के बस जो नृपति, सो न लहत सुखसाज़।
मनहि बाँधि दृग देते हैं, मन कुमार कौं राज॥३१४॥
गुण से दोष-उदाहरण
दुख न मानि जो तजि चल्यो, जानि अँगार गँवार।
छितिपालन की माल मैं, तैं ही लाल सिँगार॥३१५॥
दोष से गुण - उदाहरण
दधि छुड़ाय मोहन लियो सखी, सघन बन ठौर।
बड़ो लाभ मन मैं गुन्यौं जो न कियो कछु और॥३१६॥
अवज्ञा-लक्षण
और के गुन दोष ते और के गुन दोष।
जहँ न अवज्ञा तहँ कहत कबिजन बुद्धि अदोष॥३१७॥
उदाहरण
रावरे नेह को लाज तजी अरु गेह के काज सबै बिसराए;
डारि दिए गुरु लोगनि को डर गाँव चवाय मैं नाव धराए।
हेत कियो हम जो तो कहाँ तुम तौ 'मतिराम' सबै बहराए;
कोऊ कितेक उपाय करौ कहूँ होत है आपने, पीव पराए॥३१८॥
मेरे दृग बारिद बृथा, बरषत बारि प्रबाह।
उठत न अंकुर नेह को, तो उर ऊसर माह॥३१९॥
छं॰ नं॰ ३१४ भावार्थ – जो राजा मंत्रियों के वश में रहते हैं उन्हें सुख नहीं मिलता। देखो मन नेत्रों के वश में था सो उन्होंने उसको बाँधकर उसके कुमार मनोज को राज्य दे दिया है।