पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४१४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४१०
मतिराम-ग्रंथावली

संभावन-लक्षण

:जो यौं होय तु होय यौं, जहँ संभावन होय ।
संभावन तासौं कहत, बिमल ज्ञान मतिधोय ॥२९६॥

उदाहरण

:चलत सुभाय पाय पैजननि की झनक,
उर उपजन लागे केलि के कलोल हैं;
फूलनि के हार हियरे सौं हिरकनि लागे,
छलकन रस नैन तामरस लोल हैं;
स्रौन के सरोज के परस 'मतिराम' लाल,
कटकित होन लागे कोमल कपोल हैं;
तौ बनै बनाव मिलै जोबन मैं कहूँ नीके',
लोचन के, जोबन के बासर अमोल हैं ॥२९७॥

मिथ्याध्यवसति-लक्षण

एक झुठाई सिद्ध कौं झंठो बरनत और ।
तहँ मिथ्याध्यवसाय कौं कहत सुमति मति-दौर ॥२९८॥

उदाहरण

:खल-बचननि की मधुरता चाखि साँप निज' स्रौन ।
रोम-रोम पुलकित भए कहत मोद गहि मौन ॥२९९॥

ललित-लक्षण

:बय॑ बाक्य के अर्थ को, जहँ केवल प्रतिबिंब ।
प्रस्तुत मैं बरनत ललित, निर्मल मति बिधु बिंब ॥३०॥

उदाहरण

:मेरी सीख सिखै न सखि मोसौं उठै रिसाय।
सोयो चाहत नीद भरि सेज अँगार बिछाय ॥३०१॥


१ सोय, २ वाके, ३ यौं, ४ अंग ।