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मतिराम-ग्रंथावली

उदाहरण

आयो बसंत रसाल प्रफुल्लित कोकिल बोलनि स्रौन सुहाई ;
भौंरनि को 'मतिराम ' कियें गुन काम, प्रसून -कमान चढ़ाई ।
रावरो रूप लग्यौ मन मैं, तन मैं तिय के झलकी तरुनाई ;
धीर धरौ अकुलात कहा, अब तौ बलि बात सबै बनि आई ।।२८४॥

प्रत्यनीक - लक्षण

प्रबल सत्रु के पक्ष पर, जहँ बिक्रम उल्लास ।
प्रत्यनीक तास कहत, कबिजन बुद्धि -बिलास ॥ २८५॥

उदाहरण

तो मुख छबि-सौं हारि जग भयो कलंक समेत ।
सरद - इंदु अरबिंदमुखि अरबिंदनि दुख देत ॥ २८६ ॥

काव्यार्थापत्ति-लक्षण

जो जीतो यह कहा',इहिबिधि जहाँ बखान ।
कहत काव्य पद' सहित तह, अर्थापत्ति सुजान ॥ २८७॥

उदाहरण

बिंब - से अरुन अति अमल अधर पर,
मंद बिलसत चारु चाँदनी सुबास है ;
कासौं जाय बरनि बनक नाक बेसरि की,
ललित बिलोकनि पै बिबिध बिलास है ;
कबि 'मतिराम' पाय सहज सुबास आस,
भौंरनि की भीर न तजत आस-पास है ;
कहा दरपन कैसे पावत बदनजोति,
चंद जाको चेरो अरबिंद जाको दास है ॥२८८॥


१ पावै यो तो यह कहा, २ हित, ३ पद, ४ सुहासु । छं० नं० २८४ गुन= रस्सी । बलि = बलिहारी जाऊँ । इस छंद में कालिदास कृत ऋतुसंहार के एक श्लोक का भाव है ।