३९२ मतिराम-ग्रंथावली षष्ठ विभावना-लक्षण जहाँ काज ते हेतु कौं बरनत प्रगट प्रकास। तहँ बिभावना औरऊ बरनत बुद्धि बिलास ॥ २०७ ।। उदाहरण भयो सिंधु ते बिधु सुकबि बरनत बिना बिचार । उपज्यौ तौ मुख इंद ते प्रेम पयोधि अपार ॥ २०८ ॥ विशेषोक्ति-लक्षण जहँ परिपूरन हेतु ते प्रगट होत नहिं काज । बिशेषोक्ति तहँ कहत हैं सकल सुकबि सिरताज ॥२०९॥ उदाहरण पियत रहत पिय नैन यह तेरी मृदु मुसकानि । तऊ न होति मयंकमुखि तनिक प्यास की हानि ।। २१० ॥ प्यौ राख्यौ परदेस ते अति अद्भुत दरसाय। कनक-कलस पानिप-भरे सगुन उरोज दिखाय ॥ २११॥ असंभव-लक्षण जहाँ अर्थ के सिद्धि को संभव बचन न होय । तहाँ असंभव होत है बरनत हैं सब कोय ॥ २१२ ॥ उदाहरण यौं दुख दै ब्रजबासिन कौं, ब्रज कौं तजि के मथुरा सुख पैहैं; वै रसकेलि बिलासिनि कौं, बन-कुंज नि की बतियाँ बिसरैहैं। जोग सिखावन कौं हमको, बहरयौं तुम-से उठि धावन ऐहैं; ऊधो नहीं हम जानत ही मनमोहन कूबरीहाथबिकैहैं ॥२१३ ॥ १ वह, २ सरसाय, ३ निसि केलि, ४ धैहैं । छं० नं० २११ भावार्थ-यात्रा के समय जलपूर्ण कुंभ मिलना शकुन है । नायिका ने यही शकुन-पूरा किया पर यहाँ कुंभ उरोज थे। नायक प्रसन्न होकर रुक गया और परदेश नहीं गया। छं० नं० २१३ धावन =दूत ।
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