पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३९३

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ललितललाम

DERSARKAR. ललितललाम उदाहरण जा दिन ते चलिबे की चरचा चलाई तुम, _ता दिन ते वाकै पियराई तन छाई है; कबि 'मतिराम' छोड़े भूषन-बसन-पान, सखिन सौं खेलनि-हँसनि बिसराई है। आई ऋतु सुरभि सुहाई प्रीति वाके चित्त, ऐसे मैं चलौ तौ लाल रावरी बड़ाई है; सोवति न रैन-दिन रोबति रहति बाल, बूझे तें कहत सुधि मायके की आई है ।।१९२॥ कोपनि तें किसलय जबै होहिं कलिन तैं कौल। तब चलाइए चलन की चरचा नायक नौल ॥१९३॥ विरोधाभास जहँ बिरोध सों लगत है, होत न साँच बिरोध । कहत बिरोधाभास तहँ, बुधजन बुद्धि बिबोध ॥१९४॥ उदाहरण दोऊ जूरे सहजादिन के दल, जानत है सगरो जग साखी; मारू बजै रस बीर छके बर, बीरनि कित्ति बड़ी अभिलाखी। नाथ-तनै करतुति करी जस-जोति जगी 'मतिराम' सुभाखी; स्रोनित बैरिन को बरसाय कै, राव सता रन मैं रज राखी ॥ १९५॥ १ मचै । छं० नं० १९५ साखी-साक्षी गवाह । नाथ-तनै =गोपीनाथ के पुत्र छत्रसाल । रज राखी रजपूती रक्खी । मुख्य अर्थ यह है पर प्रकट में यह जान पड़ता है कि धूल रक्खी।

  • देखो रसराज उदाहरण मुग्धा प्रवत्स्यत्प्रेयसी।

+देखो रसराज उदाहरण प्रौढ़ा प्रवत्स्यत्प्रेयसी ।