पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३८७

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ललितललाम

CASSETTES Abandoned ललितललाम ३८३ - विनोक्ति-लक्षण जहँ प्रस्तुत कछ बात बिन, कैनीको, के हीन । बरनत तहाँ बिनोक्ति हैं, कवि 'मतिराम' प्रवीन ॥१५९।। उदाहरण विषयनि ते निर्बेदवर, ज्ञान, योग, ब्रत, नेम । विफल जानिए ये बिना, प्रभ-पद-पंकज प्रेम ॥१६॥ देखत दीपति दीप की, देत प्रान अरु देह । राजत एक पतंग मैं, बिना कपट को नेह ॥१६१॥ समासोक्ति-लक्षण जहँ प्रस्तुत मैं होत है, अप्रस्तुत को ज्ञान । समासोक्ति तहँ कहत हैं, कबिजन परम सयान ॥१६२॥ । उदाहरण चिंता मैं चित के सब सुधि बिसरावत है, ____ मंडल बिमल तेरे मुख द्विराज को; सोयबे कौं साजत सरस परजंक तेरौ, __ स्याम अंग छबि इंदीबर की समाज को। कबि 'मतिराम' काम-बाननि सौं बेध्यो यौं, जु दुःख भयो सकल समूह सुख साज को; कहा कहौं लाल तलबेली तलफत परयो, बाल अलबेली को बियोगी मन लाज को ॥१६३॥ परिकर तथा परिकरांकुर-लक्षण साभिप्राय विशेषननि, सो परिकर मतिराम' । साभिप्राय बिशेष्य तें, परिकर-अंकुर नाम ॥१६४।। परिकर-उदाहरण समर के सिंह सत्रसाल के सपूत, सहजहि बकसैया सदा' सिंधुर मदंध के; १ बर। छं० नं० १६३ द्विजराज चंद्रमा । तलबेली हड़बड़ी।