३८२ मतिराम-ग्रंथावली व्यतिरेक-लक्षण जहाँ होत उपमान ते उपमेय मैं बिसेख । तहाँ कहत ब्यतिरेक हैं कबिजन मति उल्लेख ॥१५५॥ उदाहरण बड़े-बंस-अवतंस राव भावहिं तेरे, बड़े तेज नए गये देसपती दबि हैं; कहै 'मतिराम' बड़ी कित्ति उमड़ाई यातें, ____ सकल बड़ाई आज तो मैं रही फबि हैं। सुनिए पुराननि मैं जंबूदीप बड़ो एक, जंबू-तरु जामैं फल हाथिन की छबि हैं; ताह ते बड़ो है तेरो कर कामतरु, जासौं बड़े करिबर फल पावत सुकबि हैं ॥१५॥ सहोक्ति-लक्षण काज हेतु कौं छोड़ि जहँ ओरनि के सहभाव । बरनत तहाँ सहोक्ति हैं कबिज़न बुद्धि प्रभाव ॥१५७॥ उदाहरण महाबीर राव भावसिंह को प्रताप साथ, _जस के पहूँच्यौ छोर दसहूँ दिसानि के; दल के चढ़त फनमंडल फनीपति को, फूटि फाट जात साथ सैल की सिलानि के। दुज्जन के गन कलपद्म के बागनि में, करन बिहार साथ सुर-प्रमदानि के; संपति के साथ कबि सौधनि बसत बन, दारिद बसत साथ बैरी-बनितान के ॥१५८।। छं० नं० १५६ जंबू =जामुन का वृक्ष । छं० नं० १५८ प्रमदा=स्त्री। सौध=चूने से धवलित महल ।
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मतिराम-ग्रंथावली