पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३८५

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ललितललाम

ललितललाम ३८१ प्रथम निदर्शना-लक्षण सदृश वाक्य जुग अर्थ को जहाँ एक आरोप । बरनत तहाँ निदर्शना कबिजन मति अति ओप ॥१४८॥ उदाहरण जो गुन बृद सतासुत मैं कलपद्रुम मैं सो प्रसून समाजै ; कीरति जो ‘मतिराम' दिवान चंद में चाँदनी सौ छबि छाजै । राव मैं तेज को पुंज प्रचंड सो आतप सूरज मैं रुचि' साजै; जो नृप भाऊ के हाथ कृपान सो पारथ के कर बान बिराज।। १४९॥ द्वितीय निदर्शना-लक्षण जहँ बरनन पद अर्थ को बरनत हैं कबिराज । निदरसना यह दूसरी बरनत बिबुध समाज ॥१५०॥ उदाहरण जब कर गहत कमान सर देत परनि को भीति । भावसिंह मैं पाइए तब अर्जुन की रीति ॥१५१॥' तृतीय निदर्शना-लक्षण करत असत सत अर्थ को, एक क्रिया सौं बोध । निदरसना यह और ह, कहत सुकबि मति सोध ॥१५२॥ असत-उदाहरण मधुप, त्रिभंगी हम तजी प्रगट परम करि प्रीति । प्रगट करत सब जगत मैं कट कुटिलन की रीति ॥१५३।। - सत-उदाहरण हरिमुख लखि लोचन सखी, सुख मैं करत बिनोद। प्रगट करत कुबलयन कौं, चंद्रोदय तें मोद ॥१५४॥ १ शुभ, २ प्रभु, ३ बर्तन, ४ समुझत । छं० नं० १५१ परनि=शत्रुओं को।