पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३८०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३७६
मतिराम-ग्रंथावली

३७६ मतिराम-ग्रंथावली Sanerutxmadia RECHAR चंचलातिशयोक्ति-लक्षण बरनत हेतु प्रसक्ति ते उपजत है जहँ काज । चंचलातिशय उक्ति तहँ, वरनत हैं कविराज ।। १२५ ॥ उदाहरण बारि के बिहार बरबारन के बोरिबे कौं, बारिचर बिरची इलाज जय काज की; कहै 'मतिराम' बलवंत जल-जंतु जानि, दूर भई हिम्मति दुरद सिरताज की । असरन-सरन के चरन-सरन तके, त्यौं ही दीनबंधु निज नाम की सुलाज की; धाए रति' मान अति आतुर गुपाल मिली, बीच ब्रजराज कौं गरज गजराज की ।। १२६ ॥ सतरौहीं भौंहनि नहीं दुरत दुराए नेह । होत नाम नँदलाल के नीपमाल-सी देह ॥१२७॥* अत्यतातिशयोक्ति-लक्षण : होत हेतु पीछ जहाँ, होत प्रथम ही काज । अत्यंतातिशयोक्ति तहँ, बरनत सब कबिराज ।। १२८ ।। उदाहरण जीते जोर जंग अति अतुल उतंग तन, दूनी स्यामरंग छबि छपदनि छाए तें; १ एते, २ अंग। छं० नं० १२६ बारिचर=ग्राह। दुरद-द्विरद=हाथी। अरारन- सरन के चरन-सरन तके=अशरणों को शरण देनेवाले भगवान् के चरणों का आश्रय लिया । रति मान =प्रीति-पूर्वक । गरज-गर्जन, गरज । छं० नं० १२९ छपद-षट्पद= भौंरा । अनिलवायु । धाराधर मेघ ।

  • देखो रसराज उदाहरण लक्षिता ।

eroncreationalitingfinirmis. rammertainmenorrernamLHorrormingmammyb