पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३७७

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N ARCONP ललितललाम ३७३ . सापह्नवातिशयोक्ति-लक्षण जहाँ अपन्हति सहित सो, बरनत मति अभिराम। सापह्नव अतिशय उकति, तहाँ कहत ‘मतिराम' ॥ ११४ ॥ उदाहरण झूठ' इंदु अरविंद मैं, कहत सुधा मधुबास । तो मुख मंजुल अधर मैं, तिनको प्रगट प्रकास ॥११५॥ भेदकातिशयोक्ति-लक्षण औरै यों करि के जहाँ बरनत सोई बात। भेदकातिशय उक्ति तहँ कहत बुद्धि-अवदात ॥ ११६ ॥ उदाहरण औरै कछु चितवनि चलनि, औरै मृदु मुसकानि । और कछ सख देति है, सके न बैन बखानि ॥ ११७ ॥ द्विविध संबंधातिशयोक्ति-लक्षण जहँ अजोग है जोग मैं, जहँ अजोग मैं जोग । संबंधातिशयोक्ति यह, भाषत सब कबि लोग ।। ११८ ॥ का उदाहरण सुरजनबंश राव भावसिंह सूरज तू, तोते आज जगै जग जप-तप-जाग हैं; झलकै ललाई मुख अमल कमल तेरे, हिए हरिचरन-कमल अनुराग हैं। सत्ता के सपूत ते जगाई 'मतिराम' कहै, लहलही कीरति कलपबेलि बाग हैं ; RABIC १ मूढ़, २ मृदुबास । छं० नं० ११९ जाग यज्ञ । करी=हाथी ।