पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३७५

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ललितललाम ३७१ कहै मतिराम' दीने दीरघ दुरदबद , मूदिर से मेदूर मुदित मतवारे हैं। तेग त्याग राजत जगतराव भावसिंह , मेरे जान तेरे गज याही ते पियारे हैं; दुज्जनि के दल कबि लोगनि के दारिदनि , नीकै करि गजन की फौजनि सौं मारे हैं ॥१०५ ॥ सिद्ध विषया उदाहरण मोचन लागी भुराई की बातनि सौतिनि सोच भुरावन लागी; मंजन के नित न्हाय के अंग अंगोछि कै बार झुरावन लागी । मोरि मुखै मुसकाय के चार चितै मतिराम' चरावन लागी; ताही सकोच मनो मृगलोचनि लोचन लोल दुरावन लागी । १०६॥ सिद्धविषया फलोत्प्रेक्षा उदाहरण बारन धूपि अगारनि धूपि के धूम अँध्यारी पसारी महा है ; आननचंद समान उग्यौ मृदु मंजु हँसी जनु जौन्ह-छटा है । १ दुज्जन के दल कबि लोगन के दारिद गयंदनि की फौजनि सों मौजनि सों मारे हैं। २ द्वारनि । छं० नं० १०५ बिलंद=ऊँचा। दुरग=दुर्ग, क़िला । मुदिर= मेघ । मेदूर=स्निग्ध, चिक्कड़, चरबीसंयुक्त । छं० नं० १०६ मोचन लागी भुराई की बातनि=भोलेपन की बातें छोड़ने लगी। दुरावन लागी=छिपाने लगी । छं० नं० १०७ बारन धूपि बालों को सुखलाकर । अगारनि धूपि=मकानों को धूप की सुगंधि से युक्त करके।