SITAMA R SHUS220pwoments SA: ललितललाम कहै 'मतिराम' अवलंब राजै धरम को, महोदधि मरजाद मेरु परिमान को। कीरति की कौमूदी सु छाई छिति छोरनि लौं, बिमल कलानिधि है कुल चहुवान को ; दानि-कलपद्रुम सुजानमनि भावसिंह, भानु भूमितल को दिवान हिंदुवान को ॥ ७९ ॥ ____ स्मृति-भ्रम-संदेह-लक्षण एक बस्तु लखि आन को, सुमरन-भ्रम-संदेह। बरनत भूषन तीन बिधि, जे कबिजन मति-गेह।। ८०॥ स्मृति-उदाहरण सोय संग सुख, जागि दुख लहि समुझयो निरधार । छीन पुन्य सुरलोक ते, लेत अवनि अवतार ॥ ८१ ।। भ्रम-उदाहरण • उँजियारी मुख-इंद्र की परी उरोजनि आनि । कहा अँगोछति मुगुध तिय, पुनि-पुनि चंदन जानि ॥ ८२ ॥ छ० नं० ७९ जैतवार=जीतनेवाला । महोदधि मरजाद=मर्यादा- रक्षा में समुद्रवत् । मेरु परिमान=प्रमाण या परिमाण में सुमेरु पर्वतवत् । छं० नं० ८१ भावार्थ-स्वप्न में संयोग-सुख हुआ, जगने पर वह सुख जाता रहा और दुःख हुआ। यह स्थिति ऐसी समझ पड़ने लगी मानो पहले स्वर्ग में निवास (स्वप्न-संयोग-अवस्था) था, और फिर पुण्य क्षीण हो जाने पर इस पृथ्वी पर अवतार लेना पड़ा। स्वप्न-संयोग स्वर्ग-निवास के सुख के समान था और जगने पर वियोग पाप-पूर्ण मृत्युलोक के निवास के तुल्य है। छं० नं० ८२ मुगुध तिय=मुग्धा नायिका, भोली स्त्री।
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