RADE ललितललाम mr ६ ३ समोक्ति तद्रूप-रूपक उदाहरण छाँह करै छितिमंडल कौं सब ऊपर यौ ‘मतिराम' भए हैं ; पानिप कौं सरसावत, हैं सगरे जग के मिटि ताप गए हैं। भूमि-पूरंदर भाऊ के हाथ पयोद नहीं बर काज ठए हैं ; पंथिन के पथ रोकिबि कौं घने बारिद बृद बृथा उनए हैं। ७२ ॥ हीनोक्ति तद्रूप-रूपक उदाहरण बिप्रनि के मंदिरन तजि करत ताप सब ठौर । भावसिंह भूपाल को तेज-तरनि यह और ।। ७३ ॥ ___ अधिकोक्ति तद्रूप-रूपल उदाहरण दूरि भयो अधरम अंधकार अति सब, _ मुदित निहारि४ द्विज चक्कनि को गोत है; बैरिबधू-बदन कलानिधि मलीन भयो, - सकल सुखानौ पर पानिप को सोत है। कहै 'मतिराम' राव सत्रुसालनंदन को, प्रबल प्रताप पुंज आतप उदोत है; भावसिंह भानु बलाबंधु को दिवान तपै, आठऊँ फ्हर दुपहर दिन होत है ॥७४ ।। १ सिगरे, २ घन, ३ दूरि भई अधरमिनी अब अँधियारी, ४ रौ, ५ हूँ। छं० नं० ७२ भूमि-पुरंदर पृथ्वी के इंद्र । उनए=उठे । छं० नं० ७३ 'ब्रिप्रनि के मंदिरन तजि' से अभिप्राय है कि भावसिंह ब्राह्मणों पर कोप नहीं करते थे । छं० नं०७४ द्विज-चक्क ब्राह्मणरूप चक्रवाक या पक्षी चक्रवाक ।
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