पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३४८

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३४४ मतिराम-ग्रंथावली Remedies । कियौ कहा चाहत सु करो' न कुँवर कान्ह , रह्यौ अब वाको उपचारनि को करिबौ ॥४२२॥ देखि परै नहिं दूबरी, सुनियो स्याम सुजान । जान परै परजंक मैं, अंग आँच अनुमान ॥४२३।। जड़ता-लक्षण उतकंठादिक तें जु है, अचल चित्त अरु अंग । तासौं जड़ता कहत हैं, कबि, कोबिद रस रंग ॥४२४॥ ... उदाहरण सूंघे न सुबास, रहै राग-रंग तें उदास, ....... भूलि गई सुरति सकल खान-पान की; कबि मतिराम' इकटक अनमिष नैन, बूझै न कहति बात समुझे न आन की। थोड़ी-सी हँसनि मैं ठगौरी तैंने डारी स्याम, ____बौरी कीनी गोरी तें किसोरी बृषभान की; तब से बिहारी! वह भई है पखान की-सी, जब निहारी रुचि मोर के पखान की ॥४२५॥ १ कहो, २ तुम, ३ भोरी, । . छं० नं० ४२२ हमकौं तो होतु उत हेरात हहरिबो हमको तो उस ओर देखने से भी बड़ा डर लगता है । रह्यो अब वाको उपचारनि को करिबौ=अब तो उसकी दवा करना ही ठीक है। उपचार=दवा । छं० नं० ४२३ जान परै परजंक मैं, अंग आँच अनुमान =नायिका इतनी दुबली है कि चारपाई में दिखलाई नहीं पड़ती है। हाँ उसके संतप्त शरीर की गरमी का अनुभव करके उसकी स्थिति का पता लगया जाता है। छं० नं० ४२५ तब त बिहारी पखान की हे कृष्णचंद्र जब से उसने तुम्हारे मयूर-पक्षों (किरीटं आदि) की शोभा देखी है, तब से वह पाषाणवत् हो गई है।