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मतिराम-ग्रंथावली

संचारी और ऐसे हैं, जो रौद्र में नहीं पाए जाते हैं। सो जहाँ एक संचारी में रौद्र श्रृंगार से बढ़ा है, वहीं श्रृंगार रौद्र से २२ संचारियों में बढ़ा है। इसी प्रकार जहाँ हास्य-रस आलस्य संचारी में श्रृंगार से बढ़ा है, वहाँ श्रृंगार अन्य २७ संचारियों में हास्य से बढ़ा है। बीभत्स मरण संचारी अधिक रखता है, पर श्रृंगार के पास अन्य २५ ऐसे संचारी हैं, जो बीभत्स के पास नहीं हैं । भयानक में जुगुप्सा और मरण, दो संचारी ऐसे हैं, जो श्रृंगार में नहीं हैं; परंतु उधर श्रृंगार में भी २१ संचारी ऐसे हैं, जो भयानक को अप्राप्त हैं। ऐसी दशा में हास्य, बीभत्स, रौद्र और भयानक से भी संचारियों की दृष्टि से श्रृंगार श्रेष्ठ है। एक बात और है, श्रृंगार रस के संचारी विशेषतया मृदुल भाववाले हैं। संचारियों की आपस में तुलनता करते समय पाठकों को कदाचित् प्रसिद्ध अँगरेज़ समालोचक जॉन हेनरी निउमैन के निम्नलिखित कथन से कुछ सहायता मिले—

"यह और कहा जा सकता है कि धार्मिक गुण विशेष कवितामयी होते हैं—ध्यान और तन्मयता उत्पन्न करनेवाले गुणों की तो बात ही क्या—दीनता, सरलता, दया, संतोष और लज्जा में भी कविता की प्रचुर सामग्री है। इसके विपरीत साधारण और विशेषतया अक्खड़ वृत्तियों में आलंकारिता तो विशेष दिखलाई जा सकती है, पर कविता का वैसा अवसर नहीं है, जैसे क्रोध, रोष, ईर्ष्या, उद्दंडता, स्वतंत्रता आदि*[]।"

आठ या नव स्थायी भावों में सबसे अच्छा स्थायी कौन है, इस पर भी पाठकों को विचार करना चाहिए। रति, हास, शोक, क्रोध,


  1. *It may be added that virtues peculiarly Christian are especially poetical; meekness, gentleness, compassion, contentment, modesty, not to mention devotional virtues: whereas, the ruder and more ordinary feelings are the instruments of rhetoric more justly than of poetry-anger,indignation, emulation, martial spirit and love of independence.

    —John Henry Newman