RESHARINAGAR ३१२ मतिराम ग्रंथावली नखत'-से फूल' रहे फूलन के पुंज घन', कुंजन मैं होति जहाँ दिन ही मैं राति है; ता बन की बाट कोऊ संग न सहेली साथ', कैसे तू अकेली दधि बेचन को जाति है ? ॥२६७।। तोकौं देउँ बताय हौं तू कत होत उचाट । ग्वालिनि दधि बेंचन गई बंसीवट की बाट ॥२६८॥ क्रियाचतुर-लक्षण करै क्रिया सौं चातुरी जो नायक रसलीन । क्रियाचतुर ताकौं कहत, कबि 'मतिराम' प्रबीन ॥२६९॥ उदाहरण नंदलाल गयो तित ही चलि कै जित खेलति बाल अलीगन मैं; तहाँ आपु ही मूंदे सलोनी के लोचन चोरमिहीचनि खेलन मैं । दुरिबे को गई सिगरी सखियाँ, 'मतिराम' कहें इतने छिन मैं ; मुसकाय के राधिका कंठ लगाय छिप्यौ कहूँ जाय निकुंजन मैं । / २७०॥ साँझ समैं वा छैल की छलनि कही नहिं जाय । बिन डर बन डरपाय के लई मोंहि उर लाय ॥२७॥ - प्रोषित-नायक-लक्षण नायक होय बिदेस मैं जो बियोग अकुलाय । तासों प्रोषित कहत हैं जे प्रबीन कबिराय ॥२७२॥ १ तखत, २ फूले, ३ बन, ४ मनो, ५ कहि, ६ सखी। छं० नं० २६७ बाट रास्ता । इस छंद की भूमिका विस्तार के साथ भूमिका में दी गई है पाठक उसे वहाँ पढ़ें। छं० नं० २७० चोरमिहीचनि=आँख-मिचौअल खेल । दुरिबे को छिपने के लिये। छं० नं० २७१ छलनि-छल करने का ढंग। डरपाय के=डरवाकर।
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